Sunday, March 27, 2011

Kisi Roz

Kisi roz aana tum hamari gali, Hame yuhi rijhana meri kali
Tere surat ko dekh hi jee lenge hum, Hme n satana meri e pari
Kisi roz......

Tera hu me tera hi rahunga, Bhale hi aa jaye tuj se hasia koi meri zindgi me
Tum agar hum se muh mod bhi logo to bhi, Me tuje chahunga sada aise hi
Kisi roz......

Teri n hogi izazt agar, To teri gali me pav tak n rakhenge
Meri taraf se befikr rahna tum, Yu ham tume badnam n karenge
Kisi roz......

Par zara tere dil ko bhi puch, Uski kya razza hai
Mere pyar me kayal hai, Ya sirf chupchap hi dhadakta hai
Kisi roz......

Meri ankho me tere hi sapne hai, Dil me bi teri hi surat
Na aaye yaki agar tuje to, Mere sukhe aansu to dekh
Kisi roz......

Aaj sirf tuje itna hi kahte hai, Jis kisi se ho tum khush uska nam batlad dena
Phir n kahna e sanam hame ki hamne tere dil ki hasrat nahi puchhi
Kisi roz......

Ugam Singh Rajpurohit

Saturday, March 26, 2011

किसे अपना कहें इस मतलबी दुनिया में
दिखते तो सभी अपने आस-पास हैं पर कोई हमारे पास नही हैं
किसे अपना कहें...

रोते हैं तो आँसू पोछने वाला कोई नहीं हैं
खुशियों का जरा दिख जाये ठिकाना उने ज़रा सा भी तो घेरा ङालने वाले बहुत हैं
किसे अपना कहें...

काँटे तो बोने वाले हज़ार खङे हैं
पर फूलों का लाने वाला नज़र तक नहीं आता हैं
किसे अपना कहें...

जिंदगी तुम ऐसे ही चलती रहना मैं होंसला नही खोने दूँगा
तुम तो मेरा साथ देना मेरा
कोई अपना नहीं...

उगम सिंह राजपुरोहित

Wednesday, September 8, 2010

समय अपने इशारें पर,
इंसान को नचाता हैं।
किसी को बनाता तो किसी को मिटाता हैं,
जिन्दगी की न जाने कैसी-कैसी कविता बनाता हैं॥

गति जो पहचाने इसकी,
अस्तित्तव उसी का टिकता हैं।
चले न इसके अनुरुप जो,
जीवनभर वह रोता हैं॥

समय के साथ लक्षय लेकर जो चले,
सफलता उसी के चरणों का वरण करें।
इंसान तुम श्रेष्ठ जो ठहरा!
फिर इन्तजार तुझे किसका हैं?

राह काँटोँ भरी होगी,
फिर भी उस पर चलना होगा।
शूल के बाद ही फूल मिलेंगें,
धैर्य तुमें रखना होगा

उगमसिंह राजपुरोहित
मेरी आराधना मेरी कविता

प्रगति के पथ पर

भारत जा रहा हैं उन्नति के शिखर पर, हम मदद जरुर करेंगें उसके प्रगति-पथ पर।
आजादी तो हमें मिल गईं पर मंजिल अभी दूर हैं, हाथ ह्रदय पर रखकर देखो कष्टो से जनता व्याकुल हैं॥
अपनी सुख-सुविधा में हमने ताख पर रखे नियम-कायदे, क्या स्वतंत्रता सेनानियों ने इसलिए दिया अपना बलिदान? कि हम भूल जाएं आजादी के मायने? पुरखो ने इसे लहूं से सिँचा त्याग से दिया यह तोहफा!
अब फर्ज बनता हैं अपना करें इस आजादी की रक्षा॥

द्वेष, हिंसा, भ्रष्टाचार मचा हैं चारोँ ओर हाहाकार!
ढेरोँ बुराइयों ने रखा हैं घेर हमारा प्यारा हिन्दुस्तान-2
भङक रहीं हैं असंतोष की ज्वाला,
जख्मी हैं सारा हिन्दुस्तान?

रामराज्य बापू का सपना सबसे अच्छा हो देश अपना, स्वतंत्र भारत में हो सुशासन स्वस्थ हो राष्ट्र का वातावरण।
पर अब विकास की दौङ में नैतिकता का ह्यस हो रहा?
देखो विङम्बना ये कैसी! आज संविधान का भी अपमान हो रहा?

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